Kanke, Ranchi, Jharkhand

( A State Government University )

बीएयू में सरहुल पूजा व महोत्सव धूम-धाम से मनाया गया

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय प्रांगण स्थित सरना स्थल में शुक्रवार को पारंपरिक रीति-रिवाज से सरना धर्मावलंबियो ने पूजा की। स्थानीय पाहान प्रकाश मुंडा ने पारंपरिक विधि-विधान से मिट्टी का घड़ा भरा, साल वृक्ष की पूजा की, लाल, सफेड व कुर्थिया रंग के मुर्गे की बलि दी, सूर्य एवं ग्राम देवता की आराधना तथा सुख-शांति व समृद्धि की कामना की। साथ ही प्रसाद स्वरूप हड़ीया अर्पित किया। मौके पर कांके विधायक समरीलाल, कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह, कुलसचिव डॉ नरेंद्र कुदादा, निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ जगरनाथ उरांव एवं डीन एग्रीकल्चर डॉ डीके शाही ने सरना स्थल 5 प्रतिनिधि के रूप में पूजा अर्चना की।

कार्यक्रम का संचालन डॉ बसंत चन्द्र उरांव, प्रो अरुण पूरण एवं कमल महली ने किया। मौके पर विवि के निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह, निदेशक सीड एंड फार्म डॉ एस कर्माकार, डॉ आरपी मांझी, डॉ पीआर उरांव, वैज्ञानिक, शिक्षक, कर्मचारी एवं बड़ी तादाद में छात्र-छात्राएँ मौजूद थे। इससे पहले सरहुल पर्व के सम्मानित आगंतुको ने भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण की।

सरहुल महोत्सव का आयोजन : पूजा कार्यक्रम उपरांत बीएयू सरहुल पूजा समिति ने कृषि संकाय स्थित आरएसी ऑडिटोरियम में सरहुल महोत्सव का आयोजन किया। इस दौरान कृषि, पशुचिकित्सा, वानिकी एवं कृषि अभियंत्रण महाविद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने सरहुल आगमन के स्वागत गीतों तथा छोटानागपुरी लोक गीत एवं नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति से लोगों को मुग्ध किया। इनके प्रस्तुति छात्र-छात्राओं ने उल्लास, उमंग एवं जोश के साथ ऑडिटोरियम में ढोल-नगाड़े के साथ नाच–गान किया अपने भाषण में कृषि स्नातक छात्रा भाब्या सिंह ने सरहुल पर्व को परंपरा, संस्कृति, जीवन से जुड़ी प्रकृति पर्व बताया।

मौके पर बतौर मुख्य अतिथि कांके विधायक समरीलाल ने कहा कि प्रकृति पर्व सरहुल का कृषि से अटुट संबंध है। अपनी शिक्षा, शोध और अनुसंधान से प्रकृति के धरोहर को बनाने, सजाने, संवारने और निखारने की भावी जिम्मेदारी कृषि विश्वविद्यालय के छात्रों की है। बीएयू के हाल की उपलब्धियों पर उन्होंने कहा कि बीएयू के मान एवं सम्मान से कांके विधान सभा क्षेत्र का गौरव बढ़ता है।

अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि वैश्विक रूप से जलवायु परिवर्त्तन की वजह से हमारी प्रकृति पर बुरा प्रभाव पड़ा है। हम प्रकृति के संसाधन का उपयोग तो करते है, लेकिन प्रकृति की रक्षा एवं संरक्षण के प्रति शिथिल है। सरहुल पर्व प्रकृति की पुजा करने का एक महान अवसर है। इस प्रकृति पुजा के इस अद्भुत अवसर सभी को आगामी खरीफ/बरसात के मौसम में न्यूनतम एक पेड़ लगाने का प्रण लेना होगा।

डीन एग्रीकल्चर डॉ डीके शाही एवं कुलसचिव डॉ नरेंद्र कुदादा ने भी सरहुल पर्व की महत्ता पर अपने विचार व्यक्त किये। समिति सचिव डॉ बसंत चन्द्र उरांव ने स्वागत किया तथा धन्यवाद डॉ आरपी मांझी ने दी।

मौके पर डॉ एमएस मल्लिक, डॉ जगरनाथ उरांव, डॉ पीके सिंह, डॉ एस कर्माकार, डॉ एमके गुप्ता, ई डीके रुसिया, डॉ अरुण पूरण, डॉ पीआर उरांव, डॉ जे केरकेट्टा, डॉ प्रमोद राय, एचएन दास सहित भारी संख्या में शिक्षक, वैज्ञानिक, कर्मचारी एवं छात्र – छात्राएँ भी मौजूद थे।